ये मन नही आता बाज़
आज कलम बेताब है मेरी..लिखने को कुछ अल्फ़ाज़.. नही पता क्या.. पर कुछ लिखने का मन है आज.. ऐसा बिल्कुल नही कि मन में कोई उलझन हो लेकिन.. समझ नही आ रहा.. कि आज छेड़ू कौन सा साज़! बातें तो बहुत सारी है कहने को.. मगर.. यूँ ही तो सब बताया नही जाता.. और ये मन नही आता बाज़ || बेबाक सामने कही जाती है कुछ बातें अपने आप.. तो कुछ बातें यूँ ही बह जाती है आँसुओं के साथ.. ऐसा बिल्कुल नही की उन बातों में ख़ता है मेरी लेकिन.. बस किसी का दिल ना दुखे.. इसीलिए छुपा लेती हू मैं वो बात! बातें तो बहुत सारी है कहने को.. मगर.. यूँ ही तो सब बताया नही जाता.. और ये मन नही आता बाज़ || कुछ बातें है ऐसी भी.. जिनको बोलू बस कुछ लोगो के साथ.. और कभी तो बस किसी एक को.. जिसको समझ आये मेरी बात!! ऐसा बिल्कुल नही की उन बातों में कोई शिकायत है मेरी लेकिन.. बस उन बातों में अपनापन है.. कभी प्यार तो कभी डाँट! बातें तो बहुत सारी है कहने को.. मगर.. यूँ ही तो सब बताया नही जाता.. और ये मन नही आता बाज़ || जहन में दबी हुई और भी होती हैं कई बात.. जो बहुत चाहने पर भी, बयाँ करने में