क्यूँकि माँ तेरी कोई नहीं है उपमा ||
तू बस सुन ले तो सब परेशानिया छोटी सी.. तू साथ हो तो अनजान गलियां भी घर जैसी.. तू मान जाए तो सारी गलतियां मांफ.. तू देख ले तो सब कुछ दिखने लगे साफ़! समझ से परे है यह प्यारा सा रिश्ता.. क्यूँकि माँ तेरी कोई नहीं है उपमा || आज भी सीखाती रहती है वो, क्या सही है और क्या है गलत... चाहे जितने तर्क-वितर्क कर लो.. और बोल दो कुछ उनको पलट... रूठ जाती है वो कभी, तो कभी बात सुनकर भी मान जाती है.. पर कभी बस बोलकर की "यह मैंने कहा है".. अपनी भी मनवा लेती है ! समझ से परे है यह प्यारा सा रिश्ता.. क्यूँकि माँ तेरी कोई नहीं है उपमा ||