काले पागल बादल

बरस रहे घनघोर गगन मे,
गुंजित, गर्जित, तर्जित स्वर में!!
मन मे, घर मे, गहन कानन मे..
धनि ही क्या, निर्धन के भी मन मे,
अविचलित, काले, पागल बादल..

मिटा सभी के बीच की दूरी..
सर्वत्र समानता मान जरुरी..
दे कर कृषक को मेहनत की मजूरी..
बरस रहे है तड-तड य़ू ही..
अविचलित, काले, पागल बादल..

मन मे भर कर मृदुल उमंगें..
नाच रहे सब भूखे सुख से..
पूरे वर्ष का हर्ष जो आया..
संपूर्ण जगत मे हरियाली लाया..

अब तो सपनों की पालकी मे झूल रहा है मेरा मन..
चल रे चल मुझको भी ले चल अब हर घर आँगन..
आहा रे!!
अविचलित,काले, पागल बादल..

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