राजनीति

राजनीति

थोड़ी अलग, थोड़ी अजब, थोड़ी भ्रष्‍ट, है ये राजनीति..

चाहे मानो या ना मानो.. है ये ही सच्चाई आजकल की..

 

यूं तो राजनीति चली आ रही है, महाभारत के समय से ही..

जब धर्म के धुरंधरो को चुनौती, शकुनि के षड्यंत्र से मिली..

परंतु तब धरा पर कृष्ण थे, उनके साथ 'गीता' का ज्ञान था..

और आज विश्व पर छाई है.. बस तृष्णा और अज्ञानता!

 

केवल सत्ता की लालसा में पुत्र, पिता को है दुत्कारता..

भूल गया मनुष्य मनुष्यता को, आज वो प्यार नहीं पहचानता.

सब आरोप मढ़ते है.. एक दूसरे पर स्वयं की भूल का..

आजकल पशुओं में दिखता है वात्सल्य और मानव में क्रूरता.

 

थोड़ी अलग, थोड़ी अजब, थोड़ी भ्रष्‍ट, है ये राजनीति..

चाहे मानो या ना मानो.. है ये ही सच्चाई आजकल की..

 

चाहे हो गाँव का आंगन, या पॅसेंजर ट्रेन या हो चमचमाती कार..

या हो ऑफीस की कॅंटीन, या घर, या हो मीना बाज़ार..

हर भारतीय के मन में बसा है आजकल बस ये ही एक सवाल..

कि.. आखिर किसकी होगी अगली सरकार??...

 

हर नेता साबित करता है, विरोधी को सबसे बड़ा अपराधी..

कुर्सी के लिये छली जा रही है आज जनता सीधी साधी.

आगे वो नेता चुनाव जीत कर, ज़िंदगी के मज़े उठाएंगे..

फिर मिल जाये वो विरोधी कहीं.. तो उसको गले लगायेंगे.

 

बस पाँच साल की बात है.. कि इन लोगो का साथ हैं..

और अगले चुनाव में उन्हे.. फिर करने दो-दो हाथ हैं..

सब बोलते तो रहते हैं.. कि देश का भविष्य सुधारना है..

पर असल मकसद तो हर किसी का बस सत्ता को पाना है.

 

थोड़ी अलग, थोड़ी अजब, थोड़ी भ्रष्‍ट, है ये राजनीति..

चाहे मानो या ना मानो.. है ये ही सच्चाई आजकल की..

 

हम और आप बस बोल कर कुछ खास बदलाव नहीं ला सकते..

जैसे की गरजने वाले बादल, वर्षा नहीं करा सकते.

इसलिये अगर मन में आस है.. देश में बदलाव लाने की..

तो आवशयकता है हमे, चुनाव में अपना मत डालने की..

 

क्यूंकि बदलाव तभी आयेगा, जब बदलाव हम लायेंगे..

नहीं तो कुछ समय बाद हम, दाने - दाने को मोहताज़ बन जायेंगे.

इस प्रजातांत्रिक देश में.. हमको अपनी ताकत दिखानी है.

हमे अपनी सरकार, हमारे लिये, खुद के बहुमत से बनानी है..

 

थोड़ी अलग, थोड़ी अजब, थोड़ी भ्रष्‍ट, है ये राजनीति..

चाहे मानो या ना मानो.. है ये ही सच्चाई आजकल की..

Comments

Pahadi_Canary said…
:).. Thanks Jaisan..:D

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