बस चंद लम्हे ही तो रह गये!!


आज लगने लगा है कि.. बस चंद लम्हे ही तो रह गये..
जाना बहुत दूर है मुझे पर.. ये मेरे मन को कौन कहे?

अपने घर मे चैन से रहना.. भला किसको अच्छा नही लगता..
पर अपने सपनो के खातिर हमको.. सब कुछ है छोड़ना पड़ता..
ये कुछ कर दिखाने की आस ही है जो.. जीने का सबब बन जाती है..
चाहे जितनी दूर हो मंज़िल मगर.. ये राह भर साथ निभाती है!!

आज लगने लगा है कि.. बस चंद लम्हे ही तो रह गये..
जाना बहुत दूर है मुझे पर.. ये मेरे मन को कौन कहे?

कल इसी ने ही तो मुझको उकसाया था.. .आगे  बढ़ते जाने को..
इसी ने तो मुझको समझाया था.. सब भूल अपने कदम बढ़ाने को..
और आज ज़रा देखो तो इसको.. ये ही खुद बाल-मनुहार करके रो रहा..
और वो जो काम आज सँवारने हैं.. उन सबको भूल भावुक-सा ये हो रहा!!

आज लगने लगा है कि.. बस चंद लम्हे ही तो रह गये..
जाना बहुत दूर है मुझे पर.. ये मेरे मन को कौन कहे?

बस आँखें मूंद माँगने से सब मिल जाए.. ऐसा आख़िर कहाँ होता है..
हौले-हौले.. चार कदम बढ़ाकर ही.. इंसान  मंज़िल तक पहुँचता है..
और आज अगर डगमगाए ये कदम.. तो फ़िर आगे मैं ही खुद को कोसुंगी..
क़ि काश!! आज मैं थोड़ी हिम्मत कर पाती.. शायद तब मैं ये ही सोचूँगी!!

आज लगने लगा है कि.. बस चंद लम्हे ही तो रह गये..
जाना बहुत दूर है मुझे पर.. ये मेरे मन को कौन कहे?

अब बस कुछ ज़्यादा नही है सोचना.. जो ठाना है.. वो करना है..
खुद में विश्वास है.. और साथ.. खुदा भी तो क्यूँ डरना है..
क्या-क्या खो दिया अभी तक मैने.. ये सोच अब कुछ नही पा सकती हूँ..
सोचना तो बस ये है मुझे कि.. अब मैं कैसे.. आगे बढ़ती जा सकती हूँ!!

आज लगने लगा है कि.. बस चंद लम्हे ही तो रह गये..
जाना बहुत दूर है मुझे.. चाहे ये मन कुछ भी कहे!!

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