तकलीफ!
तकलीफ किसे कहते है, अब जाकर समझ आया...
आजकल मन में काफी कुछ है बोलने के लिए...
और जुबाँ हर वक़्त ख़ामोश रहती है |
क्यूंकि लगता है कि, कोई समझना ही नहीं चाहता है...
चाहे कुछ भी कर लूँ मैं, दोष मुझ पर ही आना है |
तकलीफ किसे कहते है, अब जाकर समझ आया...
वो जो किसी वक़्त मुझे पलकों पर बिठाये रखते थे...
आज दुनियाँ के बारें मे सोच कर, मुझसे रूठे बैठे है |
जब मेरी आवाज सुनना ही, उनको अब रास नहीं आता है...
तो सोचती हूँ अपनी ख़ामोशी से ही, उनको खुश कर देते है |
तकलीफ किसे कहते है, अब जाकर समझ आया...
हर कोई शायद, अपने-अपने नजरिये से सही होता है...
यही सोच कर, कोई शिक़वा नहीं किया मैंने |
पर ख़ामि और ख़ूबी तो ढूंढ़ने वालो के नज़रिये मे है...
जानबूझकर तो कोई भी, ग़ुनाह नहीं किया मैंने |
तकलीफ किसे कहते है, अब जाकर समझ आया...
आजकल ज़िन्दगी मुझे इतनी खुशनुमा नहीं लगती...
पर अब जैसी भी है जिंदगी, लगता है सही ही है |
अब सबसे अजनबी बनकर रहने का ज़ी करता है...
"ख़ास" बनने कि उम्मीद तो अब मैंने छोड़ दी है |
तकलीफ किसे कहते है, अब जाकर समझ आया...
लग रहा है टूट-सी गयी हूँ मैं अंदर से...
अब कोई भी माहौल पूरी ख़ुशी नहीं देता |
जब मेरे अपने ही, मेरी ख़ुशी से शर्मिंदा रहते हैं...
तब मंजिलो के आगे की मंजिल से भी सुक़ून नहीं मिलना |
तकलीफ किसे कहते है, अब जाकर समझ आया...
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