आखिर ऐसा क्यूँ होता है


क्यूँ यूँ आँखें नम है, और मन उदास..

और गला भर आता है यूँ-ही बार-बार..

हँस तो देती हूँ मैं, पर ये दिल अंदर से रोता है..

समझ नहीं आ रहा कि आखिर ऐसा क्यूँ होता है!!


अब तो बस दूसरों की कहानियाँ सुनना अच्छा लगता है..

अपनी कहानी सोचूँ अगर, तो मुझे रोना आता है |

कभी लगता है अपनों को खो देने का डर,

तो कभी ख़ुद की नजरो मे गिर जाने का डर || 


हाँ, जानती हूँ मैं कि ईश्वर का बेशकीमती तोहफ़ा होते है माँ-पापा..

अच्छी शिक्षा और परवरिश दी आपने, जिससे खड़ी हूँ अपने पैरों पे...

आपकी वजह से मिले मुझे पंख, जिनसे मैं उड़ सकती हूँ... आसमान में,

पर क्यूँ अब, आप दोनों ही मुझे उड़ता हुआ देख.. ऐसे सहम रहे हैं??


मेरी ख़ुद की ज़िन्दगी के फैसलों में, आप मुझे समाज का डर दिखाते हैं!

मानिये तो... क़ाबिल हूँ, समझदार हूँ मैं.. पर आप शायद मानना नहीं चाहते हैं...

जिस समाज की बात आप करते हो, उनको तो मेरे वज़ूद से कोई मतलब नहीं..

फिर आप क्यूँ, मेरी बात को नज़रअंदाज करते हैं, जैसे मैं इस दुनिया मैं ही नहीं रही..


अब बहुत हो गया, इतना भी अनदेखा मत करना कि मैं हार मान जाऊँ...

कहीं कल आप मुझे आवाज़ दो.. और मैं शायद आपको सुन ही ना पाऊँ...

दुखता है मन जब आप से बात ना हो.. पर जानती हूँ कि मैं हूँ अपनी जगह सही.. 

सीखा है मैंने इस दुनिया मे, कि इंसानियत से बड़ा कोई जाति, कोई धर्म नहीं..


क्यूँ यूँ आँखें नम है, और मन उदास..

और गला भर आता है यूँ-ही बार-बार..

हँस तो देती हूँ मैं, पर ये दिल अंदर से रोता है..

समझ नहीं आ रहा कि आखिर ऐसा क्यूँ होता है!!

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