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आखिर ऐसा क्यूँ होता है

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क्यूँ यूँ आँखें नम है, और मन उदास.. और गला भर आता है यूँ-ही बार-बार.. हँस तो देती हूँ मैं, पर ये दिल अंदर से रोता है.. समझ नहीं आ रहा कि आखिर ऐसा क्यूँ होता है!! अब तो बस दूसरों की कहानियाँ सुनना अच्छा लगता है.. अपनी कहानी सोचूँ अगर, तो मुझे रोना आता है | कभी लगता है अपनों को खो देने का डर, तो कभी ख़ुद की नजरो मे गिर जाने का डर ||  हाँ, जानती हूँ मैं कि ईश्वर का बेशकीमती तोहफ़ा होते है माँ-पापा.. अच्छी शिक्षा और परवरिश दी आपने, जिससे खड़ी हूँ अपने पैरों पे... आपकी वजह से मिले मुझे पंख, जिनसे मैं उड़ सकती हूँ... आसमान में, पर क्यूँ अब, आप दोनों ही मुझे उड़ता हुआ देख.. ऐसे सहम रहे हैं?? मेरी ख़ुद की ज़िन्दगी के फैसलों में, आप मुझे समाज का डर दिखाते हैं! मानिये तो... क़ाबिल हूँ, समझदार हूँ मैं.. पर आप शायद मानना नहीं चाहते हैं... जिस समाज की बात आप करते हो, उनको तो मेरे वज़ूद से कोई मतलब नहीं.. फिर आप क्यूँ, मेरी बात को नज़रअंदाज करते हैं, जैसे मैं इस दुनिया मैं ही नहीं रही.. अब बहुत हो गया, इतना भी अनदेखा मत करना कि मैं हार मान जाऊँ... कहीं कल आप मुझे आवाज़ दो.. और मैं शायद आपको सुन ही ना पाऊँ... द

कुछ सीखा मैंने इन झरनो को देख कर!

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कुछ सीखा मैंने इन झरनो को देख कर! पहाड़ों की ऊँचाई से घबराओ नहीं, बस थोड़ी-सी हिम्मत कर कोशिश करते रहना। अगर बढ़ते चले तुम अपने प्रवाह के साथ, तो मुश्किलों से रास्ता खुद-ब-खुद बन जायेगा। यह सीखा मैंने इन झरनो को देख कर! दिल खोलकर जियों तुम अपनी ज़िन्दगी, ये दुनियाँ और समाज एक दिन यूँ-ही किनारा लग जायेगा। ख़ुशियाँ बांटते जाओ तुम हरदम बिना करे कोई भेद-भाव, क्यूँकि दुनियाँ की सोच की तपस से तुम्हारा वज़ूद भाप बन जायेगा। यह सीखा मैंने इन झरनो को देख कर!

Vo ladki hai na bilkul seedhi-saadhi si

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Vo ladki hai na bilkul seedhi-saadhi si, sab ki aankhon ka tara hai, Ek dor-si hai vo resham ki jisne humare poore parivaar ko ek saath baandha h... Maine jab se hosh sambhala maine, tujhko apne saath paaya hai, Bhagwan ne tujhe meri pehli jigri dost, meri pehli guru, meri badi behen banaya hai... Sabse badi bachhi hai ghar ki tu, toh samajhdaar hona toh mandatory hi hai, Shayad is kaaran apne liye kam aur humare liye tune humesha socha hai.. Chahe Pantnagar se NIT ya Sarkari Naukri se abroad padhne jane ki jidd ho Meri.. Bas tu hi ek support-system thi meri jiske karaan darr ke saath bh sapne dekhne ki himmat Kari... Pata tha chahe personal ya professional problem aaye TU hai mere paas... Kamakshi ki photocopy ki image se nikal kar khud ki pehchaan ki thi mujhe talaash. Kayi saal tujhse door reh li mai tujhse didu... par sach mai koi NAHI hai tujh jaisa... Jiski purani kitabon se lekar, naye kapdo par by-default haq lage humesha (chahe fit na aaye ;)) Ab toh teri Shaadi ho gayi, sab